meriabhivyaktiya
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नीलाभ का
विस्तृत विस्तार
और तुम,,,,
जुग सहस्त्र
योजन पर
दमकता सूर्य
और तुम,,,,,
अदृश्य
प्रवाहित मंद,
कभी प्रचंड ब्यार
और तुम,,,
चन्द्र की षोडशी
कलाओं से निखरता
रात्रि का ललाट
और तुम,,,,
नित्य घटित
खगोलिय अलौकिकताएं
और तुम,,,,,
करना होगा
आत्म का इतना
विकास,,,
तब होगें एकसार
मै,,,,
और
तुम,,,,,,
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