meriabhivyaktiya
- 125 Posts
- 73 Comments
मै गुज़रते वक्त की
दरख़्तों पर
कुछ कोपलें लम्हों की
रख आती हूँ,,
ना जाने कैसा हो
अवसान मेरा
मैं खिड़कियों के करीब
बड़े पेड़ों की पंगत गोड़ आती हूँ,,,,,,
बरसाती मौसम की लाचारी
भांपते हुए
देखती हूँ चींटियों को अथक,
एकजुट दाना जुगाड़ते हुए,,
यही सोच मै भी
सुनहरे दानों का जुगाड़
करती हूँ,,
ना जाने कैसा हो
अवसान मेरा
मै दिल के गोदाम में
यादों के भोज्य पहाड़
करती हूँ,,,,
दीवारें कमरों की रंगीन
ही सही मगर
छतों की कैनवास सफेद
ही रखती हूँ
ना जाने कैसा हो
अवसान मेरा
सीधे लेटकर उकेरने
के लिए कुछ तस्वीरें करीबी
मैं आंखों में बहुरंगीं जमात
रखती हूँ,,,
लिली
Read Comments