meriabhivyaktiya
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आसान नही होता
सांसारिकता में बंध
तुम्हे रचना,,
फिर भी मै प्रयास
करती हूँ,,
हे साहित्य!
मै तुम्हे आत्मसात
करती हूँ,,,,
मिले हो ईशाषीश से
तुम्हे प्रीत का मुधरतम्
गीत मान
मै तुम्हे काव्यसात्
करती हूँ,,
हे साहित्य!
मै तुम्हे आत्मसात
करती हूँ,,
हाँ प्रेमासक्त हुई तुम
संग,मै प्रेम शंख का
निनाद् करती हूँ
मै तुम्हे विख्यात्
करती हूँ,,
हे साहित्य!
मै तुम्हे आत्मसात
करती हूँ,,
लिली
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