Menu
blogid : 24183 postid : 1367255

अपराजिता की अभिलाषा,,,

meriabhivyaktiya
meriabhivyaktiya
  • 125 Posts
  • 73 Comments

मै आत्माओं का संभोग चाहती हूँ
वासनाओं के जंगलों को काट
दैविक दूब के नरम बिछौने
सजाना चाहती हूँ,,,

करवाऊँ श्रृगांर स्वयं का तुमसे
हर अंग को पुष्प सम सुरभित
खिलाना चाहती हूँ,,,,,

अधरों की पंखुड़ियों पर सिहरती
तुम्हारी मदमाती अंगुलियों की
चहलकदमी चाहती हूँ,,

भोर की लाली लिए अंशुमाली से
नयनों को तुम्हारी नयन झील
में डूबोना चाहती हूँ,,,,,

तन की अपराजिता बेल को सिहराते
तुम्हारे उच्छावासों की बयार से अपनी
हर पात को हिलाना चाहती हूँ,,,

खिल उठेगा भगपुष्प भुजंगीपाश से
प्रीत का रस छोड़ देंगी पुष्प शिराएं
यह रसपान तुम्हे कराना चाहती हूँ,

चहचहा उठेगीं खगविहग सी उत्कर्ष
की अनुभूतियां,मै आनंदोत्कर्ष का
यह पर्व मनाना चाहती हूँ,,,,

भौतिकता का भंवर अब नही सुहाता
संतुष्टि की जलधि में ज्वारभाटा बन
अपने चांद को छूना चाहती हूँ,,,

मै तुम संग आत्मिक संभोग चाहती हूँ

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh