meriabhivyaktiya
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हृदय कुंड में प्रेम सरीखे ,
जल की अविरल धारा है ।
भाव समर्पण के पुष्पों से,
निज जीवन तुम पर वारा है।
तुम कहते हो मैं बँट जाऊँ,
व्यवहार कुशलता दिखलाऊँ।
तो सुन लो सिरजन हार मेरे!
यह बात तुम्हारी ना रख पाऊँ।
कोई प्रस्तर खंड सी धंसी हुई,
हिल जाऊँ तनिक ना गवारा है।
भाव समर्पण के पुष्पों से,
निज जीवन तुम पर वारा है।
जलधार हुई कभी बाधित तो,
अश्रुधारा से उसको भर दूँगीं।
प्रीत सुमन सब रहे सुवासित,
मन बंसत क्षणों से भर लूँगीं।
व्यथित हृदय ,रूधिर कंठ हो,
सब कुछ मन ने स्वीकारा है।
भाव समर्पण के पुष्पों से,
निज जीवन तुम पर वारा है।
हृदय कुंड में प्रेम सरीखे,
जल की अविरल धारा है।
भाव समर्पण के पुष्पों से,
निज जीवन तुमपे वारा है।
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