meriabhivyaktiya
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नीरव रात में नदी के एक किनारे को सुबकते देखा,,,
सजल नयनों को खुद पर उगी नरम घास पर रगड़ते देखा।
दरिया का पानी रह रह कर टकराता रहा,,
दूसरे किनारे की दिलासी लहरों से भिगोता रहा,,
“एक पुल तो बना दिया है देख, आऊँगा गले लगाने, तू यूँ हौसलाहारी बातें ना फेंक ”
हवा के झोंकों से ऐसे कई पैगाम पहुँचाते देखा
नदी को उनकी बातों पर मचलते देखा,,
उसकी लहरों को बेचारगी पर उफनते देखा,,
पुल की पुरजोर कोशिश की मिला दूँ उनको,,
कभी कभी उसकी सख्ती को भी लरजते देखा,,
एक सफीना पर कुछ सवार को देखा,,
पतवार से बहाव हो विपरीत बहाते देखा,,
मैने अपनी आंखों से जद्दोजहद मिलने की होते देखा,
नदी सिकुड़ी नही,ना पुल को मुड़ते देखा,,
दोनो छोरों पर दो किनारों को सुबक कर सोते देखा,,।
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