Menu
blogid : 24183 postid : 1357891

तकिए,,

meriabhivyaktiya
meriabhivyaktiya
  • 125 Posts
  • 73 Comments

दिल के भेदों को पहले
शब्दों मे ठूँसती है
फिर शब्दों को रचनाओं
के लिहाफ मे ठूँसती है
हाशिए,विराम के चिन्ह
लगा किनारों को मजबूती
से सी देती है,,,,,,,,,,,,,,,,
हाय री किस्मत कुछ दर्द
छुपाने को तू कितने तकिए
सी ती है,,,,,,,,????

इन तकियों को अपने
सिरहाने लगाती है
अकेली रातों में अश्कों
से भिगोती है,,,,
गीले तकियों पर ही
रात सुबककर सोती है,,
कोई सुन ले सुबकियां
इसलिए मुँह दबा के
रोती है,,,,,,,।

दर्द से दुखते बदन को
इन मसनदी सहारे पर
टिकाती है,,,,,,,,,
दोनो बाहों में भींच
दिल के दर्द को दबाती है
बैचैनी को मुस्कान से छुपाती है
ऐ ज़िन्दगी !तू दर्द के साथ
उन्हे दबाने के नुस्खे
भी बताती है,,,,,,,।

Tags:   

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh