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शक्ति स्वरूपा नारी की सुरक्षा, सम्मान और गौरव एवं समाज में उनकी प्रतिष्ठा को प्रतिस्थापित करने की गुहार लगानी है, कलम उठाकर समाज के सभ्य जनों जागरूक बनाना है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा दीवारों, गाड़ियों, बसों, गली-कूचों में चलते-फिरते इश्तेहारों की तरह छापना है। कितना दुर्भाग्यपूर्ण लगता है।
नारी को अबला बनाकर हर कोई उसका तबला बजाता दिखता है, बस एक अति संवेदनशील मुद्दा। द्रवित भावनाओं का प्रवाह, दयनीय अस्तित्व के चीथड़े उड़ाती रचनाएं। आंसू बहाती महिलाओं के दारूण चित्र, कभी-कभी लगता है हम जागरूक बना रहे हैं या अपनी नुमाइश लगा रहे हैं।
हर पुरुष नारी के मनोभावों से भलीभांति परिचित दिखता है. नारी की गरिमा के सामने नतमस्तक है फिर भी पुरुषों द्वारा महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार की खबरों में कमी आती नहीं दिखती। महिला अन्य महिला के मन को समझती है, फिर भी सास, बहु को प्रताड़ित और बहुएं, सासों की निन्दा करती नज़र आती हैं।
महिला दिवस के नाम पर आयोजनों और चर्चाओं का माहौल गर्म रहता है। अमल कितने करते हैं उन पर, यह भी चर्चा का विषय होना चाहिए। हाथी के दांत सा है यह विषय, दिखाने के अलग, खाने के अलग।
कैसा विरोधाभास है ये? किसको क्या याद दिलाना है, किसको क्या समझाना है? मन भ्रमित हो जाता है। माँ-बेटी की सबसे बड़ी हितैषी, पर जब वही माँ अपनी बेटी को कुलक्षनी कहती है, बेटे और बेटी में भेदभाव करती है, तो बेटियों का परम हितैषी किसे समझा जाए?
पिता पुत्री का संरक्षक, पर जब घर के किसी कोने में वही पिता ‘भक्षक’ बन जाए, तो बाहर समाज में घूमते भेड़ियों को क्या कहा जाए? पैसे के लोभ में अपना ही भाई अपनी बहन को वैश्या बना दे, तो बहन की रक्षा की प्रतीक राखी किसकी कलाई पर बांधी जाय?
यह भी एक कटु सत्य है, यूँ कहिए तस्वीर का एक रूख यह भी है। लिखते हुए अच्छा नहीं लगा, पर लिखा। घर से बाहर सुरक्षा तो बाद में आती है, घर की चार दीवारी में कितनी लड़कियां सुरक्षित हैं, यह भी विचारणीय है। सोशल मीडिया पर बाढ़ की तरह बहते ‘नारी के सम्मान और अस्तित्व की सुरक्षा’ से सम्बन्धित लेख, रचनाएं, विज्ञापन, कहानियां और न जाने क्या-क्या देखने को मिलता है।
हैरानी होती है, फिर भी नारियों के प्रति समाज का नज़रिया बद से बदतर ही होता जा रहा है। दोषी केवल पुरुष वर्ग ही नहीं, महिलाएं भी इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार हैं। देश भर मे देवी के नौ रूपों की पूजा पूरी श्रद्धा और निष्ठा से संपन्न हुई, पर देवी का जीता जागता प्रतिरूप नारी कितनी पूज्यनीय है यह एक ज्वलंत प्रश्न है. केवल पुरुष वर्ग के लिए ही नहीं महिलाओं के लिए भी।
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