meriabhivyaktiya
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मैं गीत हूं
उसके लिए,
मेरे हर
अंदाज़ को
जब तक वो
गुनगुनाता नहीं
उसे चैन आता नहीं।
मैं ठहर हूं
उसके लिए,
सरसरी नज़र
से मुझे देखकर
उसको सुकून
आता नहीं।
किसने कहा
कि मेरा प्यार
सहज है उसके लिए,
मुझे पढ़ना होता है,
मुझको जीना होता है,
मुझे घोल कर पीना होता है,
तब कहीं जाकर
नसों में मैं प्रवाहित
होती हूं, लहू की तरह।
वो कहता है मुझसे-
‘बोलती हो न,
मन की बोला करूं,
प्यार हो ईश्वरीय अनुभूति
के मानिंद
पर हमेशा नहीं बोलता’
गहनतम अनुभूति हूं
मैं उसके लिए
नाद स्वर कभी-कभी
ही प्रस्फुटित होता है।
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