meriabhivyaktiya
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दौड़ मैया के करे गलबहियां,
सरस बोल रिझाएं कन्हैंया।
लपट झपट पुचकार रहे,
नटखटी चाल बूझें हैं मइयां।
मइया सो माखन ना बनावे कोई,
स्वाद दूजा मन को ना भावै कोई।
कान्हा के मन की सब समझ रहीं,
बालक के प्रेम में जसोदा सुध खोईं।
कैसो वात्सल्य माखन में मथ रही,
तिरछे नयन से सब सुख निरख रही।
बड़ो दुलारो मोरा लल्ला कन्हैया,
मन ही मन सोच मइया हरस रहीं।
लल्ला की मीठी बतियन पे हार गई,
भर स्नेह से अपार गोद में बिठाय लई।
देखो सजल नयन से माखन चटाय रही,
कान्हा के रसीली बतियन पे वारी भई।
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