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जो होता है वह
दिखाया नही जाता,,
एक निर्धारित फोकस
के गोले मे पूरा सच
समाया नही जाता,,,,,,
कौन है असल कसूरवार
ये समझना है मुश्किल
बहुत सर खुजा के देख
लिया नही हुआ कुछ हासिल,,
सच को झूठ बनाने वाला
भी पेट की खातिर लड़े
झूठ को सच बनवा के
दिखवाने वाला भी
पेट के खातिर आड़े,,,
पेट,,पेट की इस लड़ाई
में इनका पेट भरने वाली
संवेदनशीलताएं घुटे,,,,
जिस घर में एक दिया ही
है फ़कत रौशनी करने के
लिए,वह चिराग इन जहरीले
सांपों की फूँक से बुझे,,
सुकोमल संवेदनाओं को
भड़काना अब और भी
आसान हो चला,,,
दुखती रगों पर नमक मिर्च
लगाती सोच को पहुँचाना
अतिव्यक्तिगत हो चला,,
ऐसे विषम परिवेश की बस
एक ही पुकार है,,
देश की चिथड़ी आत्मा रोकर
कर रही चीत्कार है,,
खुद के बुद्धि-विवेक को जगाइए
कुछ निहित स्वार्थों के लिए
झूठ को सच और सच को
झूठ दिखाते मिडियाई
डकोसलों पर मत जाइए,,
जागिए बंधुओं ना ऐसे
आंतरिक अराजकता फैलाइए
घायल है बहुत देश की आत्मा
अब और ना खंजर बरपाइए
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