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चंडीगढ़ की वर्णिका कुंडू का पीछा किसी राजनेता के सुपुत्र द्वारा किए जाने की घटना आज हर तरफ फैली हुई है। ऐसा नहीं है कि यह कोई पहली घटना है। रोज़ाना ऐसी शर्मसार करती और बड़े शहरों व महानगरों में महिलाओं की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगाती ऐसी सैकड़ों वारदात होती रहती हैं। छोटे शहरों की तो बात ही छोड़ दीजिए।
आधुनिकता के इस युग में महिला सुरक्षा एवं सशक्तिकरण पर लोग बढ़-चढ़कर बोलते सुनाई देते हैं। परन्तु क्या बस बोल देने मात्र से ही सोच का निर्माण हो जाता है? देश के भाग्यविधाताओं और उनकी बिगड़ैल संतानों की सोच को साफ-सुथरा कैसे बनाया जा सकता है, इस पर कोई कदम कौन उठाएगा? क्या इन मुद्दों पर भी कोई कानून बनाया जाएगा? और कितने कानून बनाए जाने की दरकार है? जब ये कानून ही कानून बनाने वालों के हाथों की कठपुतली बनकर रह जाएं, तो फिर सब राम भरोसे ही है।
एक महिला क्या दिन ढलने के बाद अपनी इच्छा के अनुसार घर से बाहर कदम नहीं रख सकती? यदि निकले तो उसकी जीवनशैली पर तन्ज़ कसे जाते हैं। अरे भई क्यों? क्या महिलाएं किसी अजायबघर का विचित्र जीव हैं? जो रास्ते पर निकलें, तो लोग आंखें फाड़-फाड़कर घूरने लग जाएं। रात के 12 बजे वे ऑफिस से, पब से, पार्टी से कहीं से भी अकेले लौटें, तो पुरुष उनका पीछा करना शुरू कर दें?
मैं उस हिम्मती वर्णिका कुंडू के साहस को सलाम करती हूं कि उन्होने उस भयावह परिस्थिति में अपनी मनोस्थिति को नियंत्रित किए रखा और उन कार सवार बिगड़ैल सुपूत्रों के अमानुषिक सोच को अंजाम देने से खुद को बचा लिया। वे निडर होकर सामने आईं। एक बार को उनके साहसी हौसलों ने बुरी नियत रखने वालों को झकझोर अवश्य दिया है। बाकी तो कानून अपने दांवपेच, गवाह-सबूत के पचड़ों में खुद ही उलझता हुआ कोई भी उचित कार्रवाई कर पाएगा या नहीं? ऐसी विकृत सोच वालों को उचित दंड मिलेगा या नहीं? इन सबकी आस करना फिजूल है।
पीछा करने वाला किसी भी पार्टी के नेता का बेटा हो, किसी भी नामी रईसज़ादे का ‘सुपुत्र’ हो, यह उतना अहम नहीं है। अहम यह होना चाहिए कि ऐसा असामाजिक कृत्यी करने वाला बस गुनहगार समझा जाए। उसके दंड की उचित सज़ा मिलनी चाहिए। सवाल, महिला रात में घर से बाहर क्यों गई, इस पर उठने की बजाय पुरुषों की ऐसी विकृत सोच पनपाने वाली परवरिश पर उठने चाहिए।
कर्मवती रक्षा की गुहार लगाएगी और हुमायूं राखी के वादे को निभाने दौड़ा आएगा, ऐसी अपेक्षा हमें अब शायद कानून व्यवस्था से रखना छोड़ देना चाहिए। हे देश की कर्मवतियों! स्वयं की रक्षा खुद करना सीखो। आत्मरक्षा के सभी पैंतरे सीखो, अपने अंदर इस तरह के हैवानों से जूझने की आन्तरिक एवं बाह्य शक्ति को पोषित और पल्लवित करो। अब बस यही एकमात्र उपाय है। सबल बनिए, सक्षम बनिए, निडर बनिए। आपके आत्मविश्वास को देखकर एक बार को हैवानियत भी खौफ खा जाए।
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