Menu
blogid : 24183 postid : 1344835

मैं गीत मिलन के…

meriabhivyaktiya
meriabhivyaktiya
  • 125 Posts
  • 73 Comments

hand in hand


मैं गीत मिलन के
गाती हूँ,
अन्तस से तुमको
ध्याती हूँ,
हे देव मेरे मन
मन्दिर के
मैं प्रीत का दीप
जलाती हूँ।


अब मन बगिया में
बसते तुम,
रजनीगंधा से
महके तुम,
मैं गंध में सुध-बुध
खोती हूँ,
मदमस्त उसी
में रहती हूँ।


जब से तुम जीवन
आधार बने,
बहती नदिया की
धार बने,
मैं नइय्या तुम
पतवार बने,
मैं तुम संग बहती
रहती हूँ।


मनमीत की मैं
मनुहार बनूँ
कहो कब तुमसे
अभिसार करूँ,
श्रृंगार करे मै
बैठी हूँ,
लोक-लाज तज
पैठी हूँ।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh