meriabhivyaktiya
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उसको कहां खोजूं जो मन में समाया है,
फूल तो दिखता है पर खुशबू कहां दिखती है,
और हठ खुशबू को देखने की है,
महसूस तो बहुत कर चुकी,
अब आप कहेंगे फूल जीव और खुशबू ईश के समान है,
एक शरीर और दूजा प्राण है,
नसिका ले रही गंध और इन्द्रियां
हो रही सम्मोहन से निष्प्राण हैं,
पलके मूंद रही और मुख पर
आनंद की मुस्कान है,
सब सुख लेकर भी आंखों
को वही प्रश्न किए परेशान है,
अनुभूतियों में जो दिख रहा
उसकी प्रकटता क्यों अदृश्यमान है?
जानकर भी बन रहा मन अन्जान है,
पुष्प तो दिख रहा खुशबू क्यों अदृश्यमान है?
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