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मुखौटे

meriabhivyaktiya
meriabhivyaktiya
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Mukhote

हर चीज़ इतनी ढंकी-मुदी
क्यों होती है,?
किताबें जिल्द से,
आत्मा शरीर से,
शरीर कपड़ों से,
भाव जज़्बात अल्फाजों से,
बदसूरत चेहरे मेकअप से,
बालों की सफेदी डाई से,
पाप कर्म, दया-दान से,
झूठ फरेब, एक कपट मुस्कान से,
घर की बदहाली परदों से,
टूटा हुआ टेबल मेज़पोश से,
दिल की उदासी खोखली खुशी से,
अकेलापन जबरदस्ती की भीड़ से,
अनचाहे रिश्ते झूठे प्यार से,
प्यार के रिश्ते लोक-लाज से,
सब कुछ खुलकर क्यों नही है?

मुखौटी लोगों पर कसते हैं फब्तियां,
उनके खुद के भी चेहरों पर होते हैं
मुखौटे, बस फर्क इतना वो मुखौटा
भी एक मुखौटे से छुपा जाते हैं,
अपनी कमियों को बड़ी खूबसूरती
से झीनें आवरण से लुका जाते हैं,
मैने भी एक मुखौटा ही लगा रखा है
एक हुनर है लिख जाने का, तो,
अपनी कमियों को शब्दों से छुपा रखा है,
है पुरजोर कोशिश के बेपरदा हो जाऊँ,
अपनी आत्मा को शरीर के मुखौटे से
आज़ाद कर जाऊँ,

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