meriabhivyaktiya
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सतरंगी चुनर माँ तेरी
अनेक्य में एका सी
आभा लहराई है।
गर्विले इतिहासी
आभूषण ने माँ
तेरी शान बढ़ाई है।
अमृत सी तेरी वाणी
में असंख्य भाषाई
त्रिवेणियां बलखाई हैं।
माँ तेरे माथे की
बिन्दिया ज्ञान सूर्य
बन, जग चमकाई है।
पग को धोता हिन्द
है द्योतक यहाँ
वेद-योग की गहराई है।
वीर सपूतों की तू
जननी, बैरी को
धूल चटाई है।
साहित्य-कला का
दर्पण है मुख,
संस्कृति विश्व सराही है।
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