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जब होने लगे पूर्वाभास,,,जीवन की सांझ हो चली ,,,

meriabhivyaktiya
meriabhivyaktiya
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जीवन की सांझ हो चली है
वह भी जानती है वह अब जाने को है
समेट रही है अपनी ज़िम्मेदारियां
आहिस्ता-आहिस्ता,,,
बांट रही है जो है बचा-खुचा,,,
रोज़ गुछाती है घर-संसार अपने बेटा का,,,,
पता नही कौन सी शाम जीवन का सूरज ढल जाए,,।
कभी अलमारियों के कपड़े सहेजती है,,कभी रसोई की सफाईयां करती है,,,कभी भविष्य मे उसकी तकलीफों को कम करने के उपाय सोचती है,,,,और खुद को बहुत असहाय पाती है।
रोज़ बेटियों को फोन भी करती है,,,त्योहारों पर आशीष भी देती है,,,,,,,,,,,,,
क्योंकी वह जानती है जीवन की सांझ हो चली है,,,।
आंसूओं को छुपाती है,,,,जीवटता दिखाती है,,,पोती को पढ़ाती है,,स्कूल के लिए तैयार कराती है,,,उसके आने का इन्तज़ार करती है,,,,,गरम भात परसती है,,सब कुछ करती है,,,,,,,,,,क्योकी वह जानती है ,,,,
जीवन की सांझ हो चली है,,,,।
छोटी-छोटी गुजारिशें करती है,,,कुछ अटके कामों को करवाने की सिफारिशें करती है,,,,,,सबको खुश रखने की कोशिश करती है,,,,जानती हूँ अच्छे से,,,वो अकेले मे हाथ जोड़ भगवान के आगे खुद को अब बुला लेने की मिन्नते करती है,,,,,,,,क्योकि वह अब जानती है ,,,,,
जीवन की सांझ होने को है,,,
जीवन की सांझ होने को है!!

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