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मुझे तुममे रहने दो,,,,,
नही चाहती कि तुम्हारे हृदय के मखमली गलीचों से बाहर अपने कदम निकालूँ,,,,,
बहुत नरम हैं ये एहसासों के गलीचे,,,
और ये जो तुमने मेरे लिए अपनी प्रीत-प्रसून से इसे सजा दिया है,,,,,,
मेरे सिरहाने अपनी सुगंधित,सुवासित भावाभिव्यक्तियों के रजनीगंधा गुलदान मे लगा दिये हैं,,,,,,,,
‘मै’ ,,,,, अब ‘मै’ नही रही,,,,, कभी तुम्हारी अभिव्यक्तियों की रजनीगंधा सी ,,,
कभी,,तुम्हारे प्रीत-प्रसून सी,,,,
कभी तुम्हारे एहसासों के मखमली गलीचों सी,,,,,, महक रही हूँ ,,,चेतना शून्य हो तुममे विलीन हो रही हूँ।
ये जो रूनझुनाते नूपुर तुम्हारी यादों के,,, जब हौले से बजते हैं,,,,,,,
इनकी खनक नख से शिख तक झनझना देती है,,,,,
ये जो प्रेमसिन्धु से गहरे तुम्हारे दो नयन मुझे निहारते हैं,,,,,,,
मै एक ही गोते मे जैसे कहीं अनन्त मे डूब जाती हूँ,,अद्भुत रूपहला संसार है यहाँ,,,शान्ति है,,,परमानंद है,,,और बस मै और तुम हैं,,,,,,,
अपने अलौकिक संसार मे विचरते,,,,
मेरा नाम सोचने मात्र से,,,
तुम्हारे हृदय मे प्रवाहित होती पुरवैया के झोंकों से भाव ,,,,,
,अधरों पर मुस्कान के कम्पित पत्तों से झूम उठते हैं,,,,,,
फिर ‘मै’ ,,,,, ‘मै’ नही रहती,,,,
पुरवैया के झोंकों से प्रभावित मेघ सी,,,,, उल्लास के क्षितिज में उमड़ती-घुमड़ती बरस जाने को आतुर हो हवा संग तैरने लगती हूँ,,,,।
ये बलिष्ठ स्कन्ध,,ये बाहुपाश,,,हृदय के स्पंदन ये गूजँता,,, ‘मेरी प्रिय” का रसचुम्बित चुम्बकीय सम्बोधन,,,,,,,,,,,,!!!!!!!!!!
फिर ‘मै’ ,,,,,, ‘मै’ नही रहती,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मै चंचल ‘जाह्नवी’ सी लहराती,,,,,,,,,
तुम्हारे हृदय के प्रशांत महासागर मे घुल जाती हूँ,,,,,,
उछलती ,,अह्लादित ‘मृग’ सी कुलाचें भरती
तुम्हारे विस्तृत वक्षस्थल के अभयारण्य् मे लुप्त हो जाती हूँ।
‘मुझे’ ,,,,,,’तुममे’ ही एकसार होकर जीवनकाव्य गढ़ना है,,,
‘मुझे’,,,,, बससससससस् तुममे ही रहना है,,,,,,तुममे ही रहना है,,,,,,,,!!!!!!
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