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क्या होगा
जब हमारा प्यार
अंतरमुखी हो जाएगा,
रस्मों रिवाज़ों से मजबूर
दूर से ही प्रीत की उष्मा पाएगा,
कोई राह
तुम तक नही पहुँती होगी,
बस कल्पनाओं मे ही
अपनी मंजिल पाएगा,
मन घर का कोई ऐसा कोना खोजेगा,
जहाँ कोई और
ना आएगा जाएगा,
आंखें मूंदकर
फिर तुम्हारी यादों का बटन दबाएगा,
मानस पटल पर
कल्पनाओं की स्क्रीन सेट करेगा,
उस पर उभरेंगे
वो सजीव से चलचित्र
जिसमे हमारी अभिलाषाएं
और इच्छाएं
मेरे निर्देशन मे
अभिनय करती नज़र आएँगीं,
शुरूवात से अन्त
सब मेरे मुताबिक घटित होगा,
हाँ तब तक मै बहुत परिपक्व हो जाऊँगीं,
तुम्हे पाने की चाह को मन मे छुपाकर ,
सबके साथ पूर्णता से जीना आ जाएगा
किसी की पुकार पर
अचानक उसे बंद कर दिया जाएगा,
कुछ बिखरे कामों को समटते हाथ,
पर मन उन्ही लम्हों को दोहराएगा,
कोई शब्द तुमसे जुड़ा
कानों मे गूँज जाएगा,
लिखे अलफाज़ों मे
तुम्हारा चेहरा नज़र आएगा,
‘बातों का समय’ तब भी
यादों का अलार्म बजाएगा,
प्यार को पूर्णता कहाँ
यह सत्य भली-भांति समझ आ जाएगा।
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