meriabhivyaktiya
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स्मृतियां जीवन्त होती हैं, मानव शरीर क्षण भंगुर है। अपने निकले हुए पेट को छुपाते हुए ‘बाबा’ और उनकी वह हंसीं बस इस तस्वीर मे ही दिखेगी। ‘स्मृतियां’ मनुष्य को ईश्वर प्रदत्त एक अमूल्य उपहार है।
आज फिर से जीवन्त हो उठी बाबा की स्मृतियां,,,, यूँ तो उनकी हर बात, उनकी भाव-भंगिमाए,उनकी आवाज़ की अनुगूँज रह रह करकानों मे गूँजती है और आंखों केआगे तैर जाती हैं,,,, कभी मन मुस्कुरा उठता है,,,तो कभी द्रवित हो जाता है,,,पर आज लिखने के लिए प्रेरित कर गई उनकी यह फोटो
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