meriabhivyaktiya
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बेफिक्र हो सबसे अब जीना चाहती हूँ,
अपने खोए वजूद को छूना चाहती हूँ।
बन्द पिंजरे मे पंख फड़फड़ाती रही हूँ,
खुद के आसमान मे उड़ना चाहती हूँ।
कई दायरों में बाँधकर रख दिए,
ख्वाहिशों के दरियाओं को।
रवाज़ों को तोड़ अब बहना चाहती हूँ,
बेफिक्र हो सबसे अब जीना चाहती हूँ।
मेरी ज़िन्दगी के फैसले मोहताज से होगए,
उम्र के हर पड़ाव मे किसी और के हो गए।
बेबसी के ये दौर अब तोड़ना चाहती हूँ,
बेफिक्र हो सबसे अब जीना चाहती हूँ।
जज़्बातों को रौंदकर महल नए बनाती गई,
हर इक दीवार को मुस्कुराहटों से सजाती गई।
कुछ तस्वीरें अपनी हसरतों की लगाना चाहती हूँ।
बेफिक्र हो सबसे अब जीना चाहती हूँ।
मेरे दर्द की पीर खुद में सुबकती रही,
ऐ ज़िन्दगी फिर भी मै खिलखिला के हंसती रही।
दबे से ज़ख्मों पर खुद मलहम लगाना चाहती हूँ,
बेफिक्र हो सबसे अब जीना चाहती हूँ।
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