meriabhivyaktiya
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पिया की बावरी बन गई अंखियां,
करेजवा को न भाएं अब प्यारी सखियां।
जाने हूँ न ठाह इनकी पिया का देस,
जिया को ठंडक पहुँचाए तोहरा संदेस।
रात रोए बिरहन सी,दिन लगे भार,
भाए नही मोहे कोई साज न सिंगार।
तन-मन सब वार तोह पे जोगन बन जाऊँ,
तुम श्याम पिया मेरे मै मीरा कहलाऊँ।
जादूगरनी तुम कहो,मै कहूँ चितचोर,
तुम संग उलझ गई सजन जीवन की डोर।
मांग मे नही सिंदूर तेरे नाम का तो क्या,
आत्मा ने रच लिया तेरे संग ब्याह।
सागर सी प्रीत तेरी मै सरिता की धार,
जनमों से हूँ मै सजन तेरे हिया का हार।
जाने हूँ फिर भी ठाह नही पिया का देस,
जिया की ठंडक एक तोहरा संदेस।।
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