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दिल करता है तुमको अपनी अलमारी के किसी कोने मे
अच्छे से सहेज कर रख दूँ,और
मशगूल हो जाऊँ रोज़मर्रा की भाग दौड़ मे।
मशरूफियत इतनी हो कि अलमारी का ‘वो कोना’
दिल के किसी कोने मे दफ्न हो जाए,
कोई साज़ कोई आवाज़ वहाँ तक न पहुँच पाए।
मेरी सुबह बालों का जूड़ा बड़ी बेतरबी से बनाते हुए
किचन की तरफ दौड़ते हुए शुरू हो,और
रात जूड़े के क्लचर को तकिए के नीचे खोंसकर सो जाए।
इतवार की अलसाई सुबह,चाय का प्याला,मोबाइल मे
तुम्हारी पुरानी ‘चैट’ को पढ़ते हुए शुरू हो
फिर ‘सनडे स्पेशल ब्रेकफास्ट’ की तैयारी मे धूमिल पड़ जाए
कुछ साल बाद अस्त-व्यस्त अलमारी को करीने से लगाने बैठूँ
‘उसी कोने ‘मे मेरा हाथ चला जाए, मैं धीरे से तुम्हे निकालूँ
मुस्कुराते होंठों और सजल नयनों से जीभर देखूँ।
साड़ी के आंचल से तुम्हारे चेहरे को पोछू,ह्दय से लगाऊँ
भारी मन से वापस उसी कोने में सहेज कर रख दूँ।
आंखों के आसूँ गालों तक आकर सूख जाए
एक गहरी सांस के साथ फिर से मशगूल हो जाऊँ
अलमारी का ‘वो कोना’ दिल के किसी कोने में खोजाए
कोई साज़, कोई आवाज़ वहाँ तक ना पहुँच पाए।
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