meriabhivyaktiya
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प्रेम का विस्तार
क्षितिज के उसपार
आत्मा से तन तक
जन्मों के बन्धन तक
ऐसी है ये डोर
जिसका न कोई छोर।
पर्वत सा धीर
सागर सा गम्भीर
पुष्प सा कोमल
झरने सा निर्मल
कहाँ जोड़ दे जाकर तार
है कल्पना के पार।
प्रेम का विस्तार
क्षितिज के उसपार।
एक शाम सा उदास
कभी भोर सा उल्लास
प्रतिक्षण है प्यास
दूर तक न कोई आस
शीतल मंद बयार
जीवन का आधार
प्रेम का विस्तार
क्षितिज के उसपार
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