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मन के साथ कुछ झण,,,,,,

meriabhivyaktiya
meriabhivyaktiya
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आज कुछ पल ‘मन’ के साथ बिताए,,,,,, समुद्र के किनारे रेत पर बैठा,,, उगलियों से कुछ आकृतियाँ खींचता है,,,,,,फिर उन्हे मिटा देता है,,,फिर खींचता,,,,,घंटों इसी प्रक्रिया मे खोया हुआ उसे जारी रखता है।
अचानक एक लम्बी गहरी साँस लेकर अंतरिक्ष की ओर देख खड़ा हुआ,,,,हाथों मे लगी रेत को झाड़ा,,, दो कदम चला। अहहहहहहहहहह ! जाने किस उहापोह मे है????
शाम ढलते ही सूरज को हसरत भरी निगाहों से देखता है, शायद कोई बहुत बड़ी उम्मीद लगाई थी,प्रभात की प्रथम किरण से,,,,,,,,जिसके पूरा ना होने पर बड़ी उदासीनता के साथ, अपलक दृष्टी से तब तक देखता रहा, जब तक सूरज दूर समुद्र की हलचल करती लहरों मे डूब नही गया ।
एक मुस्कान के साथ वापस चल पड़ा। ऐसा लगता था,,,,,,,मानो जीवन के सफर मे अकेला जूझ रहा था, और टूट सा गया था। हम्म्म्म्म्,,,,, हाथ बाँधें, गरदन झुकाए, किनारे-किनारे रेत के साथ खिलवाड़ करता हुआ, अपनी असमर्थता को कह पाने मे असफल।
अकेला था,,,,कोई विश्वासपात्र नही था,,अतः यह प्रण कर लिया था, किसी से कुछ ना कहूँगा,,,,,,हसूँगा,,,, बोलूंगा,,,,, चेहरे पर बेबसी??????? नही,,,,,कभी नही,,,,। लेकिन कब तक????????थकान भरे दिन के बाद जब शाम आती है, एकाकीपन साथ लाती है,, तब स्वतः नम आखों के साथ बुदबुदा उठता है- “हाय मै अकेला”!!!!!!
सम्भाला उसने स्वयं को और तेज गति से गन्तवय की ओर चल पड़ा। उफ्फ,,,, ये बेबसी ये निराशा !!! रेत पर लकीरें खींचने, ढलते सूरज अपलक देखने को विवश कर देती है।
परन्तु ये ‘मानव मन’ है, एक नयें प्रभात के साथ नई आशा करना इसका स्वभाव है। आशा है एक नए प्रभात का उदय शीध्र होगा।।।।।

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