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कोमल अभिव्यक्ति अतीत के गलियारे से

meriabhivyaktiya
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नीरव रात,ठंडी ठंडी पवन का मधुर स्पर्श मात्र मन को प्रसन्न कर गया। चाँद छिपा है बादलों की ओट में, देख रहा है चुपचाप कि मेरी अनुपस्थिति मे ये धरती कैसी लगती है? और इस आँख मिचौली का आभास पृथ्वी को हो चुका है, शायद दूर क्षितिज पर आसमान ने यह बात पृथ्वी के कान मे फुसफुसाई है-” क्यों विह्वल नेत्रों से चन्द्रमा को खोजती हो? वो वही बादलों की ओट मे बैठ इस सुहावनी रात मे तुम्हारे शांत, धीर रूप और गति को देख प्रभावित हो रहा है।
यह सुन पृथ्वी लजाती है, नेत्र झुकाती है, मुस्कान बिखेरती है, जैसे अन्तरमन मे हुई अद्भुत हलचल को छिपाना चाहती हो। लेकिन वो यह अनुभूति छिपा नही पाती वह रात्रि के इस मनोहरित वातावरण के रूप छलक जाती है।
पृथ्वी के इस अद्भुत सौन्दर्य को देखकर चन्द्रमा छुप नही पाता,,,,,, और तब होता है धरती और चन्द्रमा का मिलन,,,, पर दूर से,,,क्योकी उन्हे डर है कोई उन्हे देख न ले । ये दूर के इशारे दोनो को सन्तोष देते हैं।
रात मे खिलती कुमुदिनी चाँद और पृथ्वी के मिलन पर दोनो की प्रसन्नता की अभिव्यक्ती है। धीमे-धीमे बहती पवन से नदियों और झरनों की लहरों से उठने वाले संगीत मे तल्लीन चन्द्रमा की आगोश मे पृथ्वी,,,,,,, आह!!!!! ये दैविक अनुभूति,,,,,,।
इस प्रेम और सुकून की मौन बेला मे कब समय बीत गया पता ही नही चला,,,,,। अचानक पक्षियों के कोलाहल और सूर्य की प्रथम किरण,,,,,,,जैसे आँख मलते हुए उठा हो।यह देखते ही दोनो ने एक दूसरे से विदा ली
चन्द्रमा बार बार पीछे मुड़कर पृथ्वी को देखता गया, जैसे कह रहा हो- प्रिय !चलता हूँ, रात्रि मे फिर मिलेंगें ,,,,जब वातावरण मे प्रेम होगा, सरसता होगी , मौन होगा,,,पुनः मिलन की आशा लिए दोनो ने एक दूजे से विदा ली।

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